सस्ती सीएनजी की निकलेगी हवा
मुंबई।। पेट्रोल-डीजल की महंगाई से त्रस्त होकर अगर आप सीएनजी कार खरीदने की योजना बना रहे हों, तो जरा ठहरिए। हालात संकेत दे रहे हैं कि डीजल के मुकाबले सीएनजी के दाम में चल रहा भारी अंतर बहुत दिन बरकरार नहीं रह पाएगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज के कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन के नैचरल गैस के उत्पादन में आई तेज गिरावट और रीटेल आउटलेट पर गैस की कमी की वजह से निजी गाड़ियों में भी कम्प्रेस्ड नैचरल गैस (सीएनजी) का इस्तेमाल घटने लगा है।
पेट्रोल (68 रुपये-73 रुपये) और डीजल (41 रुपये-45 रुपये) के मुकाबले सीएनजी (31 रुपये -32 रुपये) का दाम काफी कम है। इसके बावजूद सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों की मांग नहीं बढ़ पा रही है। दरअसल, अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और राज्य सरकारों द्वारा सीएनजी को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का अभाव है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ' सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के 40,000 रीटेल आउटलेट चला रही हैं। इसके मुकाबले देश भर में सीएनजी के सिर्फ 670 आउटलेट हैं। ' सीएनजी के कम रीटेल आउटलेट की कई वजहें हैं। उनका कहना है कि इनमें कम मांग, गैस की उपलब्धता से जुड़ी समस्याओं के साथ ज्यादातर मेट्रो शहरों के प्राइम लोकेशनों पर इसकी ज्यादा कीमत है।
ज्यादातर पीएसयू ने मुंबई में महानगर गैस (एमजीएल), दिल्ली में इंद्रप्रस्थ गैस (आईजीएल) और गुजरात में गुजरात गैस जैसी सीजीडी (सिटी गैस डिस्ट्रिब्यूशन) कंपनियों के साथ समझौता किया है। ये कंपनियां गैस की सप्लाई करती हैं और उसे तेल मार्केटिंग कंपनियों के आउटलेट तक पहुंचाती हैं। ये सीजीडी अपने निजी रीटेल आउटलेट भी चलाती हैं, लेकिन जगह नहीं मिलने की वजह से ऐसे रीटेल आउटलेट की संख्या काफी कम है।
आईजीएल के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. रवींद्रन ने कहा, ' जमीन की उपलब्धता बहुत बड़ी समस्या है और दिल्ली में हम इस समस्या से जूझ रहे हैं। साल 1998 में जब सुप्रीम कोर्ट ने शहर में सभी सरकारी कंपनियों को सीएनजी अपनाने का निर्देश दिया था, उसके बाद यहां की सरकार हरकत में आई और शुरुआत में हमें सब्सडाइज्ड दरों पर जमीन मिली। लेकिन अब हम कई सरकारी एजेंसियों के साथ जमीन आवंटन के लिए काम कर रहे हैं। '
हालांकि यहां की सरकार की कोशिशों का नतीजा साफ नजर आता है। दिल्ली सरकार की कोशिशों की बदौलत ही दिल्ली में 85 सीएनजी आउटलेट हैं, जो देश के किसी भी मेट्रो शहर के मुकाबले ज्यादा है। आईजीएल के मुताबिक राजधानी में सीएनजी गाड़ियों की संख्या 2005 में 19,351 थी जो 2011 में बढ़कर 3 लाख हो गई है। सरकारी तेल कंपनियों के आउटलेट की संख्या 179 है। इससे यह भी जाहिर होता है कि देश के दूसरे मेट्रो शहरों के मुकाबले दिल्ली में सीएनजी की खपत ज्यादा है।
सीएनजी की मांग घटने के दूसरी वजहों में केजी डी6 बेसिन के गैस उत्पादन में आई गिरावट है। यहां उत्पादन कम होने की वजह से आयातित गैस या लिक्विफाइड गैस (एलपीजी) पर निर्भरता बढ़ी है, जिसका असर सीएनजी की कीमतों पर नजर आ रहा है।
पेट्रोल (68 रुपये-73 रुपये) और डीजल (41 रुपये-45 रुपये) के मुकाबले सीएनजी (31 रुपये -32 रुपये) का दाम काफी कम है। इसके बावजूद सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों की मांग नहीं बढ़ पा रही है। दरअसल, अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और राज्य सरकारों द्वारा सीएनजी को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का अभाव है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ' सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के 40,000 रीटेल आउटलेट चला रही हैं। इसके मुकाबले देश भर में सीएनजी के सिर्फ 670 आउटलेट हैं। ' सीएनजी के कम रीटेल आउटलेट की कई वजहें हैं। उनका कहना है कि इनमें कम मांग, गैस की उपलब्धता से जुड़ी समस्याओं के साथ ज्यादातर मेट्रो शहरों के प्राइम लोकेशनों पर इसकी ज्यादा कीमत है।
ज्यादातर पीएसयू ने मुंबई में महानगर गैस (एमजीएल), दिल्ली में इंद्रप्रस्थ गैस (आईजीएल) और गुजरात में गुजरात गैस जैसी सीजीडी (सिटी गैस डिस्ट्रिब्यूशन) कंपनियों के साथ समझौता किया है। ये कंपनियां गैस की सप्लाई करती हैं और उसे तेल मार्केटिंग कंपनियों के आउटलेट तक पहुंचाती हैं। ये सीजीडी अपने निजी रीटेल आउटलेट भी चलाती हैं, लेकिन जगह नहीं मिलने की वजह से ऐसे रीटेल आउटलेट की संख्या काफी कम है।
आईजीएल के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. रवींद्रन ने कहा, ' जमीन की उपलब्धता बहुत बड़ी समस्या है और दिल्ली में हम इस समस्या से जूझ रहे हैं। साल 1998 में जब सुप्रीम कोर्ट ने शहर में सभी सरकारी कंपनियों को सीएनजी अपनाने का निर्देश दिया था, उसके बाद यहां की सरकार हरकत में आई और शुरुआत में हमें सब्सडाइज्ड दरों पर जमीन मिली। लेकिन अब हम कई सरकारी एजेंसियों के साथ जमीन आवंटन के लिए काम कर रहे हैं। '
हालांकि यहां की सरकार की कोशिशों का नतीजा साफ नजर आता है। दिल्ली सरकार की कोशिशों की बदौलत ही दिल्ली में 85 सीएनजी आउटलेट हैं, जो देश के किसी भी मेट्रो शहर के मुकाबले ज्यादा है। आईजीएल के मुताबिक राजधानी में सीएनजी गाड़ियों की संख्या 2005 में 19,351 थी जो 2011 में बढ़कर 3 लाख हो गई है। सरकारी तेल कंपनियों के आउटलेट की संख्या 179 है। इससे यह भी जाहिर होता है कि देश के दूसरे मेट्रो शहरों के मुकाबले दिल्ली में सीएनजी की खपत ज्यादा है।
सीएनजी की मांग घटने के दूसरी वजहों में केजी डी6 बेसिन के गैस उत्पादन में आई गिरावट है। यहां उत्पादन कम होने की वजह से आयातित गैस या लिक्विफाइड गैस (एलपीजी) पर निर्भरता बढ़ी है, जिसका असर सीएनजी की कीमतों पर नजर आ रहा है।
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