जान के दुश्मन बने मोबाइल टावर को उड़ाएंगे नक्सली
नई दिल्ली।। मोबाइल टावर से किशनजी के ठिकाने की जानकारी और बाद में उसके मारे जाने से चौकन्ने हुए माओवादियों ने फिलहाल मोबाइल और ई-मेल का इस्तेमाल लगभग बंद कर दिया है। वे सूचना के पारंपरिक जरिए को अपना रहे हैं, ताकि सुरक्षाबलों को उनका कोई सुराग न हासिल हो सके।
सूत्रों ने कहा कि नक्सलियों की इस नई रणनीति से सुरक्षाबलों को उनका सुराग हासिल करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं। बताया गया है कि अब माओवादी मोबाइल टावरों को उड़ाने की रणनीति बना रहे हैं। सरकार ने अपनी ओर से हालांकि नक्सल प्रभावित राज्यों में नए मोबाइल टावर स्थापित करने की प्रक्रिया तेज कर दी है।
सूत्रों ने बताया कि किशनजी के मारे जाने के बाद ही सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों में 500 से अधिक मोबाइल टावर लगाने की प्रक्रिया शुरू की, ताकि नक्सलियों के ठिकानों और उनकी मौजूदगी के अड्डों का पता लगाने में मदद मिले। नक्सली नहीं चाहते कि मोबाइल की मदद से सुरक्षाबल उनका सुराग हासिल करने में सफल हों, इसलिए मोबाइल टावर के अब उनके निशाने पर होने की आशंका है।
खबर है कि हथियार और गोला-बारूद सहित ट्रेनिंग के लिए पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों से संपर्क कर रहे नक्सल उनसे भी मोबाइल या ई-मेल के जरिए भी कम्यूनिकेट करने से परहेज कर रहे हैं। आम तौर पर अब तक नक्सली मोबाइल फोन का जमकर इस्तेमाल करते थे और फोन चालू रहने की स्थिति में उनकी मौजूदगी के स्थान का पता लगाना सुरक्षाबलों के लिए आसान हो जाता था।
सूत्रों ने कहा कि नक्सलियों की इस नई रणनीति से सुरक्षाबलों को उनका सुराग हासिल करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं। बताया गया है कि अब माओवादी मोबाइल टावरों को उड़ाने की रणनीति बना रहे हैं। सरकार ने अपनी ओर से हालांकि नक्सल प्रभावित राज्यों में नए मोबाइल टावर स्थापित करने की प्रक्रिया तेज कर दी है।
सूत्रों ने बताया कि किशनजी के मारे जाने के बाद ही सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों में 500 से अधिक मोबाइल टावर लगाने की प्रक्रिया शुरू की, ताकि नक्सलियों के ठिकानों और उनकी मौजूदगी के अड्डों का पता लगाने में मदद मिले। नक्सली नहीं चाहते कि मोबाइल की मदद से सुरक्षाबल उनका सुराग हासिल करने में सफल हों, इसलिए मोबाइल टावर के अब उनके निशाने पर होने की आशंका है।
खबर है कि हथियार और गोला-बारूद सहित ट्रेनिंग के लिए पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों से संपर्क कर रहे नक्सल उनसे भी मोबाइल या ई-मेल के जरिए भी कम्यूनिकेट करने से परहेज कर रहे हैं। आम तौर पर अब तक नक्सली मोबाइल फोन का जमकर इस्तेमाल करते थे और फोन चालू रहने की स्थिति में उनकी मौजूदगी के स्थान का पता लगाना सुरक्षाबलों के लिए आसान हो जाता था।
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